Save birds : विश्व गौरैया दिवस मनाया गया, गौरैया को बचाने में जुटे पक्षीप्रेमी

एक वक्त था जब गौरैया की आवाज से लोग नींद से बेदार हुआ करते थे।लेकिन अब ऐसा नहीं है। घरों में फुदकने वाली ह्यूमन फ्रेंडली नन्ही गौरेया ऐसी पक्षी है जो मनुष्य के इर्द-गिर्द रहना पसंद करता हैं। गौरैया की संख्या में लगातार गिरावट एक चेतावनी है। इस ओर काम करने की जरूरत है। 20 मार्च को नेचर फार एवर सोसाइटी भारत और इकोसिस एक्शन फ़ाउंडेशन फ्रांस के सहयोग से विश्व गौरैया दिवस मनाया जाता है।भारतीय संरक्षणवादी और नेचर फॉर एवर सोसाइटी के संस्थापक मोहम्मद दिलावर ने कहा कि यह दिवस लोगों में गौरेया के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उसके संरक्षण के लिए मनाया जाता है। गुरुकुल कांगड़ी यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रो. और कुलसचिव डॉ. दिनेश चंद्र भट्ट ने बताया कि विश्व गौरैया दिवस मनाने का उद्देश्य गौरैया पक्षी की लुप्त होती प्रजाति को बचाना है। पेड़ों की अंधाधुंध होती कटाई, आधुनिक शहरीकरण और लगातार बढ़ रहे प्रदूषण से गौरैया विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। उन्होंने कहा कि हमारी टीम ने गौरीकुंड, जोशीमठ, नैनीताल, अलमोड़ा, पौड़ी, गढ़वाल, कोटद्वार, हरिद्वार, रुड़की, देहरादून और आसपास के गांवों में गौरेया पक्षी का सर्वे किया।





इसमें ग्रामीण क्षेत्र में गौरेया कि संख्या में कोई गिरावट नहीं मिली, लेकिन शहरी क्षेत्र में 40-60 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। प्रो. दिनेश चंद्र भट्ट बताते हैं कि नागरिकों से मिले आकड़ों पर पता चला कि प्रत्येक नेस्ट से 3-4 चूजों में से 1-2 चूजे सफलतापूर्वक नेस्ट बॉक्स से बहार निकल आये। शहरों में बिल्ली, कौवा, मैना, गौरेया के चूजों को खा जाते हैं। प्रो. दिनेश भट्ट ने कहा कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गौरैया के महत्व की सार्वजनिक समझ को बढ़ाना है।





गौरैया को ऐसे बचाएँ

  • गौरैया आपके घर में घोंसला बनाए, तो उसे हटाएं नहीं।
  • रोजाना आंगन, खिड़की, बाहरी दीवारों पर दाना पानी रखें।
  • गर्मियों में गौरैया के लिए पानी रखें।
  • जूते के डिब्बे, प्लास्टिक की बड़ी बोतलेें और मटकी को टांगे, जिसमें वो घोंसला बना सकें।
  • बाजार से कृत्रिम घोंसले लाकर रख सकते हैं।
  • घरों में धान, बाजरा की बालियां लटका कर रखें।




एक्शन एंड रिसर्च फॉर कंजर्वेशन इन हिमालयाज (आर्क) के फाउंडर प्रतीक पंवार की मानें तो उनकी संस्था वर्ष 2010 से गौरेया को बचाने की मुहिम में जुटी हुई हैैं। प्रतीक पंवार का कहना है कि 2010 से पहले दून में अचानक गौरेया के संख्या में गिरावट देखने को मिली। उसके बाद आर्क के साथ ही कई अन्य संस्थाओं व पर्यावरणप्रेमियों ने गौरेया को बचाने के लिए कदम बढ़ाए। इसके लिए हाथ से तैयार किए जाने वाले घोंसले पर जोर दिया गया। यही कारण रहा है कि अब गौरेया की संख्या में बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है।





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