19 अगस्त 2024।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड(AIMPLB) ने शनिवार जारी बयान में कहा है कि यूनिफॉर्म या सेक्युलर सिविल कोड मुसलमानों को मंजूर नहीं है। वे शरिया कानून (मुस्लिम पर्सनल लॉ) से कभी समझौता नहीं करेंगे।
बोर्ड ने कहा, प्रधानमंत्री की ओर से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से धार्मिक निजी कानूनों को सांप्रदायिक करार देते हुए सेक्युलर सिविल कोड का आह्वान करना बेहद आपत्तिजनक है। बोर्ड का मानना है कि मुस्लिम समुदाय के लिए शरिया कानून का पालन करना जरूरी है और वे इसमें किसी का दखल नही चाहते।
बोर्ड का साफ कहना है मुसलमान शरिया कानून से समझौता नहीं करेंगे
बोर्ड ने कहा- समान या सेक्युलर नागरिक संहिता स्वीकार नही।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सेक्युलर सिविल कोड पर दिए गए बयान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि मुसलमान शरिया कानून से समझौता नहीं करेंगे। इसलिए समान या सेक्युलर नागरिक संहिता स्वीकार नहीं होगी। दरअसल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा था कि समाज का एक बड़ा वर्ग मानता है और इसमें सच्चाई है कि मौजूदा नागरिक संहिता एक तरह से सांप्रदायिक नागरिक संहिता है। यह एक ऐसा नागरिक कानून है जो भेदभाव को बढ़ावा देता है। यह देश को धार्मिक आधार पर बांटता है और असमानता को बढ़ावा देता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता एस.क्यू.आर. इलियास ने धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता लाने संबंधी प्रधानमंत्री की टिप्पणी को लेकर हैरानी जताते हुए इसे एक सोची-समझी साजिश बताया जिसके गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने एक बयान में कहा कि बोर्ड यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण समझता है कि भारत के मुसलमानों ने कई बार यह स्पष्ट किया है कि उनके पारिवारिक कानून शरिया कानून पर आधारित हैं, जिससे कोई भी मुसलमान किसी भी कीमत पर विचलित नहीं हो सकता। इसमें कहा गया है कि देश की विधायिका ने स्वयं शरीयत एप्लीकेशन एक्ट 1937 को मंजूरी दी है और भारत के संविधान ने अनुच्छेद 25 के तहत धर्म को मानने, उसका प्रचार करने और उसका पालन करने को मौलिक अधिकार घोषित किया है। इलियास ने कहा कि देश के निर्वाचित प्रतिनिधियों को ऐसी निरंकुश शक्तियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि संविधान में एक संघवादी राजनीतिक संरचना और बहुलवादी समाज की परिकल्पना की गई है, जहां धार्मिक संप्रदायों और सांस्कृतिक इकाइयों को अपने धर्म का पालन करने और अपनी संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार है। उन्होंने प्रधानमंत्री की ओर से संवैधानिक शब्द समान नागरिक संहिता के स्थान पर सेक्युलर सिविल कोड का प्रयोग करने की आलोचना की। इलियास ने प्रधानमंत्री की मंशा पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि वह केवल शरिया कानून को ही निशाना बना रहे हैं। उन्होंने कहा, धर्म आधारित पारिवारिक कानूनों को सांप्रदायिक बताकर प्रधानमंत्री ने न केवल पश्चिम की नकल की है बल्कि देश के बहुसंख्यक लोगों का भी अपमान किया है जो धर्म का पालन करते हैं। यह धार्मिक समूहों के लिए अच्छा संकेत नहीं है। उन्होंने कहा कि शरीयत एप्लीकेशन एक्ट 1937 और हिंदू कानूनों में बदलाव करके धर्मनिरपेक्ष संहिता लाने का कोई भी प्रयास निंदनीय और अस्वीकार्य होगा।
इलियास ने कहा कि सरकार को भाजपा सरकार द्वारा नियुक्त विधि आयोग के अध्यक्ष की टिप्पणी को कायम रखना चाहिए, जिन्होंने 2018 में स्पष्ट रूप से कहा था कि समान नागरिक संहिता न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है।