हल्द्वानी हिंसा: एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स ने हल्द्वानी हिंसा पर पेश की रिपोर्ट, नगर आयुक्त की भूमिका पर उठाये सवाल

उत्तराखंड के नैनीताल जिले के हल्द्वानी में 8 फरवरी को एक मस्जिद और मदरसे को गिराने को लेकर भड़की हिंसा के बाद पुलिस लगातार कार्रवाई कर रही है। अब तक 300 घरों की तलाशी ली गई है और काफी लोगो की गिरफ्तारी भी हुई हैं। हल्द्वानी हिंसा को लेकर 16 फरवरी को प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में APCR  के एक समूह ने फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट पेश की है, जिसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं। रिपोर्ट में लिखा है कि हिंसा के बाद स्थानीय लोगों का डर बढ़ गया है।

8 फरवरी को बनभूलपुरा क्षेत्र में एक मदरसे पर प्राशासन ने कार्रवाई की थी। प्रशासन का कहना था कि यह निर्माण अवैध था और सरकारी जमीन पर था। पुलिस की कार्रवाई के बाद इलाके में हिंसा भड़क गई। पुलिस के मुताबिक हिंसा में छह लोग मारे गए और पुलिस कर्मियों और मीडियाकर्मियों सहित 100 से अधिक घायल हो गए।

https://x.com/apcrofindia/status/1758372851692814613?s=08

APCR की रिपोर्ट
एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR), कारवां-ए-मोहब्बत और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता जाहिद कादरी ने हल्द्वानी यात्रा के बाद एक फैक्ट-फाइंडिंग रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड में मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार और घरों और दुकानों से मुस्लिम किरायेदारों को बेदखल करने और शहर छोड़कर जाने की धमकियों जैसे मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है।

एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स (APCR) की इस फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में कहा गया है कि “आधिकारिक आंकड़ों का दावा है कि केवल 30-36 लोगों को हिरासत में लिया गया है, लेकिन सच्चाई अलग है। पुलिस ने टॉर्चर चैंबर जैसे डिटेंशन सेंटर बनाए हैं। जहां अलग-अलग कारणों से दूसरे शहरों में रहने वाले हल्द्वानी के लोगों सहित कई व्यक्तियों को बंदी बनाया गया है।”

इसके साथ ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि “गिरफ्तारी से ज्यादा हिरासत में लिए गए हैं जिन्हें रखने के लिए 15 किलोमीटर दूर एक स्कूल में एक सेंटर बनाया गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि वहां पर 5000 से ज्यादा लोगों को रखा गया है।

APCR की रिपोर्ट में लगाए गए इन आरोपों से पुलिस ने इंकार किया है। पुलिस के पीआरओ दिनेश जोशी ने कहा है कि ऐसा कोई डिटेंशन सेंटर नहीं है। स्कूल सामान्य रूप से संचालित है और वे अपनी बोर्ड परीक्षा आयोजित कर रहे हैं।

रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि हल्द्वानी हिंसा मामले में मुख्यमंत्री का बयान भी प्रासंगिक है क्योंकि उन्होंने 3000 मजारों के तोड़े जाने को अपनी सरकार की उपलब्धि बताया है। जबकि उन्होंने जंगल और नजूल भूमि में अनाधिकृत हिंदू धार्मिक संरचनाओं के बारे में ज्यादातर चुप्पी साध रखी है।

रिपोर्ट में फैक्ट फाइंडिंग की टीम ने कहा कि हल्द्वानी हिंसा में लव जिहाद, लैंड जिहाद, व्यापार जिहाद और मजार जिहाद के ध्रुवीकरण वाले नैरेटिव, दावों और मुसलमानों के आर्थिक और सामाजिक बहिष्कार के आह्वान ने भी अशांति बढ़ाने में भूमिका निभाई है।

नगर निगम आयुक्त की भूमिका पर सवाल

हल्द्वानी हिंसा में इस रिपोर्ट के मुताबिक नगर आयुक्त पंकज उपाध्याय की भूमिका पर सवाल उठ रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 31 जनवरी को उनका तबादला कर दिया गया था लेकिन उन्होंने फिर भी अपना नया पदभार क्यों नहीं संभाला। इसके साथ ही वो आठ फरवरी को मुसलमानों को गाली देते हुए, मुस्लिम महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हुए देखे गए।
 सफाई कर्मी भी सवालों के घेरे में
इस रिपोर्ट के मुताबिक बनभूलपुरा हिंसा मामले में सफाई कर्मियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाल्मिकी समुदाय के सफाई कर्मचारियों ने मुसलमानों पर हमला करने में पुलिस का साथ दिया। जिसे देख के ऐसा लग रहा है कि उनका हमला ‘मुस्लिम विरोधी नफरत और कट्टरपंथ का हिस्सा’ था। क्योंकि बाल्मिकी समुदाय के एक संजय सोलंकर ने भी अपने पड़ोसी फहीम की हत्या कर दी थी।इसके साथ ही इस रिपोर्ट में कहा गया है कि पुलिस स्टेशन पर हमले से जुड़ी एक अलग घटना में तीसरे समूह की भागीदारी देखी गई। जिससे इस हिंसा में सबसे ज्यादा लोग हताहत हुए और इसी हमले के बाद हालात और बिगड़ गए।इसके साथ ही पुलिस ने वहां रखे कुरान और दूसरे सामान की लिस्ट नहीं बनाई। लिस्ट अगर बनाई भी गई तो जिम्मेदार अधिकारी को सौंपने से परहेज किया गया।

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