बाबर खान, संपादक आईक्यू न्यूज़ 24x7
हरिद्वार/ज्वालापुर। आज मुसलमानों के चौथे खलीफा हजरत अली के शहादत के दिन 21 रमज़ान को जवालापुर मस्जिद अली मोहल्ला कैतवाड़ा और खैरादियो वाली मस्जिद मोहल्ला हज्जाबान मे फ़ातिहा ख्वानी और हजरत अली के दौर ए खिलाफत पर जिक्र करते हुए उनकी शान बयान की गई।
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तो जितना भी हजरत अली के बारे में लिखा जाए कम है उनके कुछ वाक्यात पर नजर डालते हैं। मुसलमानों के आखिरी पैगंबर और रसूलल्लाह हज़रत मोहम्मद सल्लाहु अलैह व सल्लम के चचेरे भाई और दामाद और हज़रत अली की पैदाइश 13 रजब (रजब इस्लामी कैलेंडर के हिसाब से सातवां महीना) को हुई थी । उनकी शहादत 21 रमज़ान को हुई। पैगंबर मोहम्मद (स०अ०व०)के बाद सुन्नी मुसलमान हज़रत अली को चौथा खलीफा मानते हैं, जबकि शिया समुदाय हजरत अली को पहला इमाम मानते हैं।
हजरत अली की पैदाइश मुसलमानों के बीच सबसे पाक माने जाने वाली जगह काबा में हुई थी। ऐसी मान्यता है कि जब हजरत अली का जन्म होने वाला था तो उनकी मां फातमा बिन्ते असद काबे के पास गईं और काबे की दीवार फट गई, जिसके बाद उनकी मां अंदर गईं और हजरत अली काबे के अंदर पैदा हुए।
हजरत अली चौथे खलीफा बने
पैंगबर मोहम्मद (स०अ०व०) के बाद हजरत अबू बक्र को पहला खलीफा माना गया। वे रसूलल्लाह के ससुर भी थे। दो साल बाद उनकी वफात हो गई, उसके बाद हजरत उस्मान और फिर हजरत उमर को खलीफा बनाया गया। इनके बाद हजरत अली खलीफा बने।
हजरत अली ने खलीफा बनने के बाद करीब चार साल तक हुकुमत की। हजरत अली को सबसे बहादुर माना जाता है। उन्होंने इस्लाम के लिए कई जंगे लड़ीं हमेशा फातेह हुए, 19 रमज़ान 40 हिजरी को ईराक के शहर कूफा की एक मस्जिद में अब्दुर्रहमान इब्ने मुल्जिम नाम के जालिम शख्स ने हजरत अली के जहर में डूबी हुई तलवार दिन की पहली नमाज (फज्र) के दौरान सजदे से उठते वक्त आपके सर पर वार किया, शदीद जख्म हो गया जिसके चलते 19 रमजान को उनकी शहादत हो गई।
पैगंबर के दामाद
हजरत अली पैगम्बर मोहम्मद (स०अ०व०) के चचेरे भाई होने के अलावा उनके दामाद भी थे। उनकी शादी पैगंबर मोहम्मद की बेटी (स०अ०व०) हजरत फातमा जे़हरा के साथ हुई थी। हजरत अली और फातमा के पांच बच्चे थे, जिनमें हजरत हसन(बेटा) हजरत हुसैन(बेटा),हजरत ज़ैनब (बेटी) हजरत कुलसूम(बेटी) और हजरत मोहसिन(बेटे) थे।
हजरत अली का इंसाफ
हजरत अली की हुकुमत के दौरान उनके अद्ल यानि उनके इंसाफ की मिसाल दी जाती है। ऐसा बताया जाता है कि जब उन पर हमला करने वाले को उनके सामने लाया गया तो उन्होंने अपने बेटों से कहा कि इसने मेरे सिर पर तलवार से सिर्फ एक वार किया है तो इस पर भी एक ही वार होना चाहिए।
हजरत अली की अदालत का आलम ये था कि जब हजरत अली हुकुमत का काम करते थे तब बैतुल माल का तेल से चिराग जलाते थे वहीं जब काम के दौरान उन्हें अपना काम करना होता था तो हुकुमत के चिराग को बुझा कर अपना चिराग़ जलाकर काम करते थे। कहा ये भी जाता है कि हजरत अली की चार साल की हुकुमत के दौरान कोई भूखा नहीं सोया, मतलब किसी को राशन या खाने पीने की परेशानी नहीं आई।
वैसे तो हजरत अली के अदालत के कई किस्से हैं, लेकिन एक मशहूर किस्सा ये है कि एक बार दो महिलाओं ने एक ही बच्चे पर अपना दावा किया, एक ने कहा ये मेरा बेटा तो दूसरी ने कहा ये मेरा बेटा है। मामला हजरत अली तक पहुंचा। पूरा मामला सुनने के बाद हजरत अली ने एक तलवार मंगवाई और कहा इस बच्चे का सिर काट दिया जाए, इसी दौरान जो बच्चे की असली मां थी उसने फौरन कहा कि चाहे बच्चा इसे दे दो लेकिन इसे मत मारो, ये सुनते ही हजरत अली समझ गए कि बच्चे की असली मां कौन है और बच्चा उसी के हवाले कर दिया गया।
गरीब व्यापारी को दिलाया इंसाफ
यह हज़रत अली की हुकुमत के दौर का किस्सा है। ईराक के शहर कूफा के मोहल्ला बनी हमदान से हजरत अली निकल रहे थे कि उन्होंने एक तरफ शोर सुना तो वो उस तरफ मुड़े और देखा कि कुछ लोग जमा हैं। जब उन्होंने पूछा कि मामला क्या है तो पता चला कि एक अमीर आदमी ने एक गरीब व्यापारी से बकरियां ली हैं और बदले में उन्होंने जो पैसे दिए उनमें से कुछ नकली थे। व्यापारी उसे नकली दिरहम लौटाकर असली दिरहम की मांग कर रहा था, जिस पर अमीर शख्स ने उसे थप्पड़ मार दिया। व्यापारी कूफा के बाहर का था, इसलिए वह रो रहा था और लोगों को फरियाद रहा था।
इसके बाद हजरत अली ने वहां लोगों को इकट्ठा किया, मामले की जांच की और अमीरजादे को बुलाया साथ ही कुछ गवाह बुलाए गए और दिरहम उनके सामने रख दिए गए थोड़ी देर के बाद यह पता चल गया कि गरीब व्यापारी की मांग सही थी। हजरत अली ने पहले अमीर शख्स से दिरहम निकलवाए और उन्हें व्यापारी को सौंप दिए। उसके बाद उसने अपने थप्पड़ का बदला लेने के लिए व्यापारी के हाथ में चाबुक दिया, लेकिन गरीब व्यापारी ने कहा मैं इसे माफ करता हूं।
इसके बाद जब अमीर शख्स अपने घर जाने लगा तो उन्होंने कहा, हालांकि व्यापारी ने आपको माफ कर दिया है, अब आप पर हुकुमत की तरफ से मुकदमा चलाया जाएगा। उसे कूफा की मस्जिद में लाया गया, उसके बाद उसके व्यापारी के थप्पड़ के बदले में दस कोड़े मारे गए। इसके अलावा हुकुमत की तरफ से जुर्माना भी लगाया गया।
हजरत अली ने उस अमीर शख्स से कहा कि व्यापारी कूफा में परदेसी था, बदला लेने से डरता था। इसके अलावा उसकी बेइज्जती भी की गई है। फिर हुकुमत का वक्त मामले की सुनवाई में ही चला गया, इसलिए, सिर्फ माफी से गुनाह की भरपाई नहीं होगी। हजरत अली ने ये भी कहा कि छूट तब तक है जब मामला हुकुमत तक न आए, अगर कोई मामला हुकुमत के पास आता है तो उस मामले में पूरा इंसाफ किया जाएगा।
पैगम्बर मोहम्मद साहब(स०अ०व०) और हजरत अली
हजरत अली नबिये करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को बहुत अजीज थे। पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की जेरे निगरानी में हज़रत अली की परवरिश हुई। कहा जाता है कि पैगंबर मोहम्मद साहब (स०अ०व०) हजरत अली को एक लम्हे के लिए भी तन्हा नहीं छोड़ते थे। कई हदीस में हज़रत मोहम्मद साहब(स०अ०व०) और हज़रत अली के रिश्ते को समझाया गया है। कुछ हदीस ये है :-
1- रसूलल्लाह ने फरमाया कि अली मुझसे हैं और मैं अली से हूं।
2- तुम सब में बेहतरीन फैसले करने वाला अली है।
3- अली को मुझसे वो निस्बत है जो हारून को मूसा अलैहिस्सलाम से थी।
4- यह (अली) मुझसे वो तअल्लुक रखते हैं जो रूह को जिस्म से या सिर को बदन से होता है है ।
5- मैं इल्म का शहर हूं अली उसका दरवाजा हैं।