जमीयत उलेमा-ए-हिंद का निंदा प्रस्ताव, स्कूलों में शिर्क वाली शिक्षा स्वीकार नहीं- जमीयत उलेमा ए हिन्द

 बाबर खान, आईक्यू न्यूज़24x7 

07 जुलाई 2024।


प्रतीकात्मक तस्वीर

जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने 4-5 जुलाई को अपने मुख्यालय में आयोजित दो दिवसीय प्रबंधन समिति की बैठक में कई प्रस्ताव पारित करते हुए केंद्र सरकार से देश में इस्लामोफोबिया के बढ़ते मामलों को संबोधित करने के लिए व्यापक कानून लाने का पुरजोर आग्रह किया है।

दुर्भाग्यवश हमारा देश इजराइल को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है जो देश के इतिहास और परंपरा के साथ सबसे बड़ी गद्दारी है। उत्तर प्रदेश में दीनी मदरसों के खिलाफ कार्रवाई संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध-मौलाना महमूद मदनी

जमीअत उलमा हिंद की प्रबंधन समिति की सभा में कई अहम प्रस्ताव पारित:-

जमीअत उलमा-ए-हिंद की प्रबंधन समिति की सभा में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने फिलिस्तीन को लेकर भारत सरकार की नीति और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दीनी मदरसों के संबंध में हालिया नोटिस पर स्पष्ट और कठोर रुख अपनाया। मौलाना मदनी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव ने अपने सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया है कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसों, जिनकी संख्या 4204 है, उनमें शिक्षारत बच्चों को शिक्षा के मौलिक अधिकार के तहत स्कूलों में प्रवेश दिलाया जाए। इस संबंध में हम स्पष्ट रूप से कहना चाहते हैं कि इस्लामी मदरसे शिक्षा के अधिकार कानून से अलग हैं और यह अधिकार हमें संविधान ने दिया है, जिसे हम छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं।

दूसरी ओर, यह बात भी महत्वपूर्ण है कि उलेमा अपने अंदर वर्तमान समय की आवश्यकताओं को पहचानने की क्षमता भी विकसित करें। अगर उलेमा समय की मांग को समझने में विफल रहेंगे, तो वह अपने युवा लड़कों और लड़कियों को धर्म त्याग से बचाने में प्रभावी भूमिका नहीं निभा पाएंगे। मौलाना मदनी ने कहा कि उलेमा भारत के मुसलमानों का सम्मान हैं। अगर उलेमा कमजोर होंगे तो यह कौम कमजोर हो जाएगी। इसलिए उलेमा को अपने अंदर ताकत पैदा करनी चाहिए। मैं अपने सभी साथियों से कहता हूं कि जो चीज हमने नहीं सीखी है, उसको हमें सीखने की कोशिश करनी चाहिए, इसमें उम्र और शर्म को बिलकुल भी रुकावट नहीं बनने देना चाहिए।
मौलाना मदनी ने फ़िलिस्तीन में नरसंहार को लेकर कहा कि हमारे देश का यह स्वर्णिम इतिहास है कि उसने हमेशा फ़िलिस्तीन का साथ दिया है। गांधीजी ने फिलिस्तीनियों के लिए जन आंदोलन चलाने का फैसला किया था। आज दुर्भाग्यवश हमारा देश इजराइल को हथियारों की आपूर्ति कर रहा है जो देश के इतिहास और परंपरा के साथ सबसे बड़ी गद्दारी है। इस कृत्य को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए।

मौलाना मदनी ने मॉब लिंचिंग को भारत के इतिहास की सबसे भयानक महामारी बताते हुए कहा कि किसी सभ्य देश और समाज के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की कोई और बात नहीं हो सकती, इसके विरुद्ध संगठित संघर्ष के लिए सबसे बुनियादी काम यह है कि हम ग्राउंड जीरो पर जाएं, हर जिले में ऐसे लोग मौजूद हों, जो इन घटनाओं को संभालें।

मीडिया की वर्तमान भूमिका पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि उसने अपनी ताकत सत्ताधारियों के पास गिरवी रख दी है। हमारा मीडिया वर्तमान राजनीतिक स्थिति को सुधारने के बजाय विनाश की ओर ले जा रहा है, हम मीडिया से यह कहना चाहते हैं कि उसे बदलाब लाना पड़ेगा, अन्यथा यह देश के साथ अन्याय होगा।

मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा एक बौद्धिक संगठन है, यह केवल शैक्षणिक और सामाजिक संगठन नहीं है। यह सामाजिक और शिक्षा का कार्य भी करती है लेकिन यह एक बौद्धिक संगठन है। अगर हमें सामाजिक कार्यों, शैक्षणिक सेवाओं, स्कूल, अस्पतालों और कॉलेजों को बनवाने के लिए अपने विचारों से समझौता करना पड़े तो हम अपने विचारों से कभी समझौता नहीं करेंगे।

पर्यावरण पर अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पानी का संरक्षण और पौधारोपण मानवता के अस्तित्व के लिए बहुत महत्वपूर्ण कार्य हैं। हमारी मस्जिदों में ऐसी व्यवस्था हो कि वजू का पानी रिसाइकिल और री-यूज हो जाए, इसी तरह अधिक से अधिक पेड़ लगाना चाहिए। यह सदका-ए-जारिया (जिस का पुण्य मिलता रहेगा) भी है।

जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष अमीरुल हिंद मौलाना सैयद अरशद मदनी ने इस सभा के आयोजन पर अपनी हार्दिक प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि जमीअत उलमा विशुद्ध धार्मिक संगठन है, यह संगठन आधुनिक शिक्षा का विरोध करने वाला संगठन नहीं है, लेकिन जमीअत उलमा-ए-हिंद का यह निर्णय है कि नई पीढ़ी को बुनियादी धार्मिक शिक्षा प्रदान किए बिना स्कूल की शिर्क वाली शिक्षाओं पर आधारित पाठ्यक्रम न पढ़ाया जाए। हमारा यह दृष्टिकोण है कि नाज़रा और हिफ़्ज (कुरान पढ़ना और कंठस्थ करना) तथा फ़ारसी की शिक्षा के दौरान ही बच्चों को दसवीं कक्षा की आधुनिक शिक्षा दी जाए। उन्होंने आगे कहा कि इस्लाम धर्म के चिरागों के कयामत तक नहीं बुझाया जा सकता, इस्लामी शिक्षाएं और ज्ञान हमेशा जीवित रहेंगे।

मौलाना रहमतुल्लाह मीर कश्मीरी ने कहा कि वजू में अधिक पानी का इस्तेमाल करने से नमाज की विनम्रता चली जाती है। तो जाहिर है कि पानी के अनावश्यक उपयोग की इस्लाम में के लिए कोई जगह नहीं है, इसलिए जल संरक्षण के संबंध में जो कार्य योजना दी गई है, उसका पालन करने का प्रयास करें। जमीअत का कार्य और कार्यक्रम विश्व क्रांति पैदा करने के लिए है। जमीअत उलमा-ए-हिंद कार्यकर्ताओं में सामूहिकता, पदाधिकारियों में जिम्मेदारी व हमदर्दी तथा रचनात्मक सोच पैदा करना चाहती है।

मदरसा तालीमुद्दीन ढाबील के उस्ताद मुफ्ती महमूद बारडोली ने पवित्र पैगंबर के मिशन के उद्देश्यों को बयान करते हुए दीनी मदरसों की प्रणाली को आगे बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर दिया और मौलाना महमूद मदनी साहब की प्रशंसा की कि उन्होंने अपनी प्रयासों से दीनी तालीमी बोर्ड में नई जान डाल दी है।

जमीअत उलमा-ए-हिंद के उपाध्यक्ष मौलाना मोहम्मद सलमान बिजनौरी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद एक ऐसा संगठन है जिसकी बात सुनी जाती है और जहां बात पहुंचाने का उद्देश्य हो, वहां बात पहुंचती भी है। इसलिए जमीअत उलमा-ए-हिंद के कार्यों के महत्व को समझें। बहुत से इंसान के रूप में शैतान धरती पर हैं जिन्होंने शैतानों का काम संभाल रखा है। इन परिस्थितियों में निराश होने की बजाये हमें इस देश में काम करने की जरूरत है। भारत की अखंडता और इसका हित इसी में है कि देश को धर्मनिरपेक्ष रखा जाए और देश को किसी एक रंग में रंगने का सपना कभी पूरा नहीं होगा।
नायब अमीर-उल-हिंद मुफ्ती सैय्यद मुहम्मद सलमान मंसूरपुरी ने धार्मिक निर्देशों को जीवन के हर क्षेत्र में अपनाने की प्रेरणा दी। जमीअत के माध्यम से पीड़ितों की मदद करने, मकतब (धार्मिक पाठशाला) खोलने और समाज सुधार के महत्व पर प्रकाश डाला। मुफ्ती अफ्फान साहब मंसूरपुरी ने मानब समाज को लाभ पहुंचाने और समाज के बेसाहारा लोगों को सहारा देने की जरूरत पर जोर दिया।

इससे पूर्व गुरुवार की शाम दूसरे सत्र में इस्लामी मदरसों की सुरक्षा और संरक्षण पर एक प्रस्ताव पारित हुआ, जिसमें मदरसों पर सरकारी और गैर सरकारी हमलों की निंदा की गई और इन संस्थानों के महत्व पर प्रकाश डाला गया। सभा ने आंतरिक सुधारों पर ध्यान केंद्रित कराया और सरकार से मांग की कि मदरसों के खिलाफ दुष्र्रचार को रोका जाए। धार्मिक मदरसों की भूमिका को शिक्षा, नैतिक प्रशिक्षण और देशभक्ति को बढ़ावा देने में बेहद महत्वपूर्ण बताया गया और उनके खिलाफ चल रहे नकारात्मक दृष्टिकोण को राष्ट्र और समाज के लिए हानिकारक बताया गया।

एक अन्य प्रस्ताव में सरकार द्वारा स्कूली शिक्षा प्रणाली के भगवाकरण और छात्रों को शिर्क वाले कृत्यों में शामिल होने के लिए मजबूर करने की कड़ी निंदा की गई और कहा गया कि इस्लाम तौहीद (एकेश्वरवाद) की मान्यता पर आधारित है और मुसलमान अल्लाह के अलावा किसी की पूजा नहीं कर सकते हैं। भारत का संविधान प्रत्येक नागरिक को अपने धार्मिक आचरण की अनुमति देता है। स्कूली छात्रों को सूर्य नमस्कार, सरस्वती पूजा या हिंदू गीतों के लिए मजबूर करना धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है। जमीअत उलमा-ए-हिंद सरकार से मांग करती है कि ऐसे कृत्यों से बचे। मुसलमानों से आग्रह किया जाता है कि वह बच्चों में तौहीद (एकेश्वरवाद) में विश्वास पैदा करें और शैक्षणिक संस्थानों में किसी भी बहुदेववादी प्रथाओं में भाग लेने से बचें। अगर जबरदस्ती की जाए तो विरोध करें और कानूनी कार्रवाई करें।
जमीअत उलमा-ए-हिंद की प्रबंधन समिति की सभा समान नागरिक संहिता पर ज़ोर देने को नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों को खत्म करने की साजिश मानती है। यह न केवल मुसलमानों बल्कि अन्य देशभक्त वर्गों के लिए भी अस्वीकार्य है।

सभा में उत्तराखंड सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता को मनमाने ढंग से लागू करने को अन्यायपूर्ण बताया गया और केंद्र सरकार और उसके समर्थक दलों से अपील की गई कि वह समान नागरिक संहिता के किसी भी प्रस्ताव को लागू न करें और इस संबंध में भारतीय विधि आयोग द्वारा सार्वजनिक रूप से दी गई सलाह को नजरअंदाज न करें। जमीअत उलमा-ए-हिंद सभी मुसलमानों से इस्लामी शरीयत पर दृढ़ रहने और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए इस्लामी शरीयत को व्यवहार में लागू करने की अपील करती है।

जमीअत उलमा-ए-हिंद प्रबंधन समिति की सभा में आरक्षण के उद्देश्य को समझते हुए मांग की गई है कि धर्म के आधार पर आरक्षण न दिया जाए और न ही रोका जाए। बैठक में मांग की गई कि धर्म के आधार को समाप्त करने के लिए अनुच्छेद 341 में संशोधन किया जाए, ताकि अनुसूचित जाति के मुसलमानों और ईसाइयों को भी आरक्षण का अधिकार मिले, जैसा कि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और केरल में है।
एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव में असम भूमि नीति 2019 के तहत धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की जमीन से बेदखली को असंवैधानिक करार देते हुए इसे खत्म करने की मांग की गई। एनआरसी असम का प्रकाशन नहीं होने पर गहरी चिंता व्यक्त की गई। केंद्र सरकार और भारत के रजिस्ट्रार जनरल से एनआरसी के प्रकाशन के लिए अनिवार्य अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया गया।

जमीअत उलमा-ए-हिंद प्रबंधन समिति वक्फ संपत्तियों पर सांप्रदायिक तत्वों की साजिश की निंदा करती है और सरकार से वक्फ अधिनियम को रद्द करने के किसी भी प्रयास को रोकने की मांग करती है। वक्फ संपत्तियों को वापस पाने, वक्फ बोर्ड को सशक्त बनाने और वक्फ विकास निगम को सक्षम बनाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिएं। सभी मुसलमानों से अपील की गई कि वक्फ संपत्तियों की रक्षा के लिए संघर्षरत रहें।

जमीअत उलमा-ए-हिंद की प्रबंधन समिति की सभा सरकार से मांग करती है कि मुस्लिम क्षेत्रों में शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए धन आवंटित किए जाएं और शैक्षणिक संस्थानों को स्थापित किया जाए। मुस्लिम उद्यमियों के लिए माइक्रोफाइनेंस और ब्याज मुक्त ऋण प्रदान किए जाएं और सरकारी योजनाओं के बारे में जागरूकता अभियान चलाया जाए। मुसलमानों से भी अपने युवाओं के प्रशिक्षण, सादा जीवन और लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देने का आग्रह किया जाता है।

जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी, मौलाना मुफ्ती मोहम्मद अफ्फान मंसूरपुरी और मौलाना मोहम्मद उमर बैंगलुरु ने सभा का संचालन किया।
मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने घोषणा की कि हमें दो सौ ऐसे नए लोगों की जरूरत है जिन्हें हम प्रशिक्षण देकर उपयोगी बनाएंगे।

उनके अलावा मौलाना बदरुद्दीन अजमल, मौलाना महबूब हसन, मौलाना हाफिज नदीम सिद्दीकी, मौलाना रफीक मजाहिरी, प्रोफेसर नोमान शाहजहांपुरी, हाजी मुहम्मद हारून, मौलाना कारी शौकत अली कोषाध्यक्ष जमीअत उलमा-ए-हिंद, मुफ्ती अरशद मीर सूरत, मौलाना नियाज अहमद फारूकी, मौलाना आबिद कासमी दिल्ली, जुबैर गोपालनी, मौलाना मुफ्ती इफ्तेखार कासमी, मुफ्ती शमसुद्दीन बिजली, मौलाना अब्दुर्रब आजमी, मौलाना अब्दुल कादिर असम, मुफ्ती जावेद इकबाल किशनगंजी, मौलाना साजिद फलाही, मुफ्ती सलीम कर्नाटक, मौलाना इब्राहीम केरल, मौलाना सईद अहमद तमिलनाडु, मौलाना समीउल्लाह गोवा, पीर खलीक साबिर आंध्र प्रदेश, कलीम अहमद एडवोकेट भोपाल, मौलाना अब्दुल वाहिद खत्री राजस्थान, प्रोफेसर निसार अहमद गुजरात ने प्रस्ताव रखा, उनका समर्थन किया और रिपोर्ट प्रस्तुत कीं। इस अवसर पर “जमीअत उलमा-ए-हिंद की तारीख” नामक पुस्तक के तीसरे संस्करण का विमोचन हुआ। इस पुस्तक के लेखक मौलाना यासीन जहाजी हैं। मौलाना अब्दुल कवी साहब की दुआ के साथ सभा समाप्त हुई। जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी ने सभी विशिष्ट अतिथियों, सभा में भाग लेने वालों, जमीअत यूथ क्लब, आयोजकों और मीडिया के लोगों का धन्यवाद किया।

 

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